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|संग्रह=गन्ध कहीं खो गई / कन्हैयालाल मत्त
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<poem>
तन भी दुखिया
मन भी दुखिया
अच्छे गीत कहां से लाएँ ?

अन्धकार कोसों गहरा है
मौसम भी अन्धा-बहरा है
सुख के दरवाज़े के आगे
ईति-भीतियों का पहरा है

पस्त क़दम हैं
आँखें नम हैं
हाल जिगर का किसे सुनाएँ ?

क्षण-क्षण, पल-पल अदल-बदल है
नया-पुराना सब कुछ छल है
व्यक्ति-व्यक्ति की नारेबाज़ी
सिर्फ़ टूटने की हलचल है

सुबह धुंधलका
शाम तहलका
किसे रात की बात बताएँ ?

भाव परस्पर हैं टकराते
शब्द अर्थ से मेल न खाते
शिल्प-विधाएँ तोड़-मोड़कर
वही कथानक हम दुहराते

दब्बू स्वर है
दम्भ मुखर है
किसे कहां तक यों बहकायें ?
अच्छे गीत कहाँ से लाएँ ?
</poem>
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