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<poem>
वे कहते हैं पर्वत को सर पे उठा ले
कहाँ हैं मगर हौसला देने वाले

बहुत सो लिए छाँव में ये मुसाफ़िर
उमीदों के इस कारवाँ को जगा ले

किसी पेड़ की शाख़ पर ख़्वाब रख दे
कहीं तो तू अपना ठिकाना बना ले

ये सूरज, ये चन्दा, ये तारे, ये दीपक
दिलों में कहाँ इनसे होंगे उजाले

न इतनी भी नफ़रत पनपने दे मन में
ज़रा-सा कहीं एक कोना बचा ले
</poem>
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