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आग भोर की / कुँवर दिनेश

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1.
अँधेरा हटे -
क्षितिज की भट्टी में
सूरज पके!
2.
पौ फटते ही
पूर्वी क्षितिज पर -
लपटें उठीं!
3.
'''आग भोर की'''
देवदारों से छने -
स्फुलिंग कई!
4.
सूरज उगे
नभ- कैनवास पे
दिन उकेरे!
5.
लाल विहाग!
सूर्य की जिजीविषा -
'''आग ही आग!'''

</poem>