भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
सागर के उस नीले, नील कुहासे में
श्वेत पाल एकाकी झ्लक दिखाता है !...
दूर दिशा से आकर वह्क्या वह क्या खोज रहा?
क्या कुछ अपने पीछे छोड़े आता है?...
और न सुख से दूर भागता जाता है !
हलकी नीलीधारा हैउसके है उसके नीचे,
उसके ऊपर सूरज स्वर्ण लुटाता है...
वह विद्रोही, तूफ़ानों का दीवाना,