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अब जब मैं मर चुकी हूँ, प्रियतम,
मेरे लिए कोई उदास गीत मत गाओ,मेरे सिर पर कोई गुलाब मत लगाओतुम,न ही लगाओ छायादार सरू का पेड़ , मेरे सिरहाने गुलाब मत लगाओ तुम,
मेरे ऊपर उगी हरी घास बन जाओ
बारिश और ओस की बून्दों से नम,
और अगर तुम चाहो, तो मुझे याद रखना,चाहो तो मुझे भूल जाना  अब मैं नहीं देखूँगी छाया,मैं महसूस नहीं करूँगी बारिश को,मैं नहीं सुनूँगी बुलबुल कोगाते हुए, चाहे वह तकलीफ़ में होमेरे सनम !
और अब मैं छायाओं को नहीं देखूँगी,बारिश को महसूस नहीं करूँगी मैं,बुलबुल हो चाहे कैसी तकलीफ़ में,उसके दुखभरे गीत नहीं सुनूँगी मैं । धुन्धलके से गुज़रते हुए मैं देखूँगी वह सपना जो न उगता है और न अस्त होता हैअस्त,संयोग से शायद मैं कभी याद आ जाऊँ तुम्हें,संयोगवश ही तुम मुझे भूल जाना।जाना अश्वस्त ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
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