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Kavita Kosh से
अब जब मैं मर चुकी हूँ, प्रियतम,
मेरे लिए उदास गीत मत गाओ तुम,
न ही लगाओ पेड़ छायादार सरू का पेड़,
मेरे सिरहाने गुलाब मत लगाओ तुम,
मेरे ऊपर उगी हरी घास बन जाओ
बारिश और ओस की बून्दों से नम,
अगर तुम चाहो, तो मुझे याद रखना,
चाहो तो तुम मुझे भूल जाना, मेरे सनम !
अब मैं छायाओं को नहीं देखूँगी,