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हम ज्यादा ईमानदार होते हैं
जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है
वही कुछ चीज हैऔर ये वस्तुगत परिवर्तन सम्प्रेषित हम ज्यादा ईमानदार होते चले जाते हैंमुझ तक और मेरे परिवर्तनों तकजीवन में होने वाले बदलाव हमारे भीतर होने वाले बड़े बदलावों से मिलते-जुलते हैं। भाषा की तरह।
यदि रास्ता मैं तुम्हें देखता हूँ जो अब नहीं है रास्ता
जिस पर हमने तुम्हें देखा था एक बार
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