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|रचनाकार=रेखा राजवंशी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
मैंने
आँगन में उगे
तुलसी के बिरवे को
आख़िरी बार देखा
बालकनी में फैली
अकेली व उदास
बोगनबेलिया पर
एक नज़र डाली
अपनी किताबों, अपने चित्रों
ओर अपने संसार को
छुआ फिर एक बार
और फिर बत्तियां बुझा दीं
फ़ैल गया अन्धकार
लगा दिया ताला
दरवाज़े पर आख़िरी बार
और चल दी
सदा के लिए
कंगारूओं के देश में।
</poem>
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मैंने
आँगन में उगे
तुलसी के बिरवे को
आख़िरी बार देखा
बालकनी में फैली
अकेली व उदास
बोगनबेलिया पर
एक नज़र डाली
अपनी किताबों, अपने चित्रों
ओर अपने संसार को
छुआ फिर एक बार
और फिर बत्तियां बुझा दीं
फ़ैल गया अन्धकार
लगा दिया ताला
दरवाज़े पर आख़िरी बार
और चल दी
सदा के लिए
कंगारूओं के देश में।
</poem>