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{{KKRachna
|रचनाकार=रेखा राजवंशी
|अनुवादक=
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}}
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<poem>
कंगारूओं के देश में
मेरा पहला दिन
और तुम्हारे यहाँ की
ढलती रात
चलो ख़त्म हुआ
एक अध्याय
शुरू हुई नई बात
फिर भी
जाने वो क्या है
जो जैटलेग बन कर
मुझे जगाता रहा है
और ज़हन में
इसका, उसका
और शायद तुम्हारा
ख़याल लाता रहा है।
</poem>
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<poem>
कंगारूओं के देश में
मेरा पहला दिन
और तुम्हारे यहाँ की
ढलती रात
चलो ख़त्म हुआ
एक अध्याय
शुरू हुई नई बात
फिर भी
जाने वो क्या है
जो जैटलेग बन कर
मुझे जगाता रहा है
और ज़हन में
इसका, उसका
और शायद तुम्हारा
ख़याल लाता रहा है।
</poem>