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{{KKRachna
|रचनाकार=रेखा राजवंशी
|अनुवादक=
|संग्रह=कंगारूओं के देश में / रेखा राजवंशी
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
माँ शायद कुछ और
बुढ़ा गई होगी
पड़ गई होंगी
चेहरे पर
कुछ और झुर्रियां
बढ़ गई होंगी
रिश्तों में
कुछ और दूरियां
कुछ और फ़ैल गया होगा
उसका अकेलापन
कुछ और सताता होगा
आँखों का धुंधलापन
सुई पिरोते उसके हाथ
कुछ और कांपते होंगे
रिश्तेदार शायद
उससे दूर भागते होंगे
उसकी बूढ़ी आँखें
कुछ भांपे या न भांपे
पर मैं
भांप जाती हूँ सब कुछ
हज़ारों मील दूर यहाँ
कंगारूओं के देश में ।
</poem>
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|रचनाकार=रेखा राजवंशी
|अनुवादक=
|संग्रह=कंगारूओं के देश में / रेखा राजवंशी
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माँ शायद कुछ और
बुढ़ा गई होगी
पड़ गई होंगी
चेहरे पर
कुछ और झुर्रियां
बढ़ गई होंगी
रिश्तों में
कुछ और दूरियां
कुछ और फ़ैल गया होगा
उसका अकेलापन
कुछ और सताता होगा
आँखों का धुंधलापन
सुई पिरोते उसके हाथ
कुछ और कांपते होंगे
रिश्तेदार शायद
उससे दूर भागते होंगे
उसकी बूढ़ी आँखें
कुछ भांपे या न भांपे
पर मैं
भांप जाती हूँ सब कुछ
हज़ारों मील दूर यहाँ
कंगारूओं के देश में ।
</poem>