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Kavita Kosh से
बीते वर्ष, बवण्डर आए
हुए तिरोहित स्वप्न सुहाने,
किसी परी-सा रुप रूप तुम्हारा
भूला वाणी, स्वर पहचाने।
हृदय हर्ष से फिर स्पन्दित है
फिर से झंखृत झंकृत अन्तर-तार,
उसे आस्था, मिली प्रेरणा
फिर से आँसू, जीवन, प्यार।