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लुका-छिपी / बबली गुज्जर

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इतनी गूढ़ बातें करेंगी आँखें
तो कौन समझेगा टीस??

पर कौन जाने सरल होने के अपराध की सजा

धूप मुट्ठी में कैद कर लेना चाहते हैं लोग
ये दुनिया तेरे काबिल नहीं जानाँ

एक छोटी उँगली में फँसी रही
उसकी उँगली रात भर वादा करती
इतने से भरोसे के सहारे
कौन चला जाता है इतनी दूर

मैंने कभी नहीं कहा उससे
मेरे जीवन में आए, फिर भी वह आया

मैंने कभी नहीं कहा उससे
मेरे हाथों को थामे
वह देर तलक बैठा रहा
कसकर जकड़े हथेलियाँ

ये सच था कि प्रेम केवल
लत पड़ जाने तक ही साथ रहता है
ये और भी सच कि लड़कियाँ
दुःख पाल कर लेती पहाड़ सा जटिल

देर शाम सुबकती है रोशनी मद्धिम
सिसकती है शाम आते-आते

मैंने जोड़-जोड़ मौन तुम्हारा
मन की पुरानी सी बात सुनी
मैंने छोड़-छोड़ मान अपना
तारों के सहारे पूरी रात चली

मैं सदैव लुका-छिपी में हारी रही
नहीं आते थे उस खेल के नियम
खुद निकल बाहर आ खड़ी होती सदा

इस आस में कहीं कोई बिसराकर मुझे
चल न पड़े किसी नई राह

मैं ढूँढती रही ताउम्र
पूरा न हुआ वह खेल कभी
तुम निहायत ही पक्के खिलाड़ी रहे
एक बार ऐसे छिपे कि फिर कभी मिले ही नहीं।

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