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|रचनाकार=पाब्लो नेरूदा
|अनुवादक=रामकृष्ण पांडेय
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<poem>
लेकिन, जब लगता है
कि यातनाएँ और अँधेरों से
नष्ट हो रही हैं मुक्त हवाएँ
और जब तुम देखते हो कि
लहरों की आग नहीं
ख़ून है समुद्री चट्टानों पर
तभी फिदेल आते हैं वहाँ
और उनके साथ उनका क्यूबा
कैरीबिया का पवित्र गुलाब

और इस तरह
इतिहास सिखाता है
अपनी रोशनी से
कि जो है उसे आदमी बदल सकता है
और अगर वह लड़ाई में
ईमान के साथ जाए
तो उसके सम्मान में
खिल उठता है
उदार वसन्त

पीछे छूट जाती हैं
अत्याचारियों की रातें
उनकी क्रूरताएँ
और उनकी निर्मम आँखें

उसके पंजों में फँसा सोना
उसके भाड़े के सैनिक
उसके मानवभक्षी जज
उसके ऊँचे-ऊँचे स्मारक
जो हमलों, अपमान और अपराधों
के दौर में बने रहते हैं
सबके सब मिट्टी में मिल जाते हैं
जब जनता अपना साज तैयार कर लेती है
और भविष्य के लिए
हस्तक्षेप करती है
परछाइयों और उनके रखवालों की घृणा के ख़िलाफ़

गाती है और अपने गीतों से
सितारों को जगाती है
और बन्दूकों से
अँधेरे को चीर देती है

इस तरह फिदेल आते हैं
परछाइयों को काटते हुए
ताकि चमेली खिल सके ।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : रामकृष्ण पांडेय'''
</poem>
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