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बौना / संतोष अलेक्स

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बालकनी में बैठकर
चाय की चुस्‍की लेते वक्‍त
अचानक नज़र पड़ी बोनसाई पर
यूँ तो यह आकार में है बौना
मगर है आकर्षक जरूर  

दसवें मंजिल से
सामने के घर दिखते हैं बौने
हमारे फ्लैट का चौकीदार है बौना
बौने है
उसकी पत्‍नी ,बच्‍चे व इच्‍छाएँ 

वामन को वरदान दे
महाबली भी हो गया बौना

बौना है
कमरे की चारदीवारी में कैद
झूठीशान में जीता आदमी
वह आदमी नहीं
बोनसाई हो चुका है........
</poem>
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