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|रचनाकार=संतोष अलेक्स
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
माँ ने दसवीं तक की
ही पढ़ाई की थी
समझदार थी वह
पढे लिखे लोगों से भी
दु:ख इस बात का नहीं कि
माँ अब नहीं रही
दु:ख इस बात का है कि
जीतेजी वह अपने लिए नहीं जी
आंगन, अहाता, रसोई
सब कहीं मौजूद थी वह
गर्मी में, सर्दी में
तनाव में, आहलाद में
परिवार को जोड़े रखा
स्कूल से लौटने पर
एक दिन
मैं उसके लिए आंवला ले आया
उस दिन
रसोई के अंधेरे में
खड़ी होकर वह बहुत रोई
वह आधा सोई
आधा जागी
और हम बड़े हुए
खुशी इस बात की है
कि परिवार के सदस्यों की
यादों में , साँसों में
जीती है वह आज भी
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
माँ ने दसवीं तक की
ही पढ़ाई की थी
समझदार थी वह
पढे लिखे लोगों से भी
दु:ख इस बात का नहीं कि
माँ अब नहीं रही
दु:ख इस बात का है कि
जीतेजी वह अपने लिए नहीं जी
आंगन, अहाता, रसोई
सब कहीं मौजूद थी वह
गर्मी में, सर्दी में
तनाव में, आहलाद में
परिवार को जोड़े रखा
स्कूल से लौटने पर
एक दिन
मैं उसके लिए आंवला ले आया
उस दिन
रसोई के अंधेरे में
खड़ी होकर वह बहुत रोई
वह आधा सोई
आधा जागी
और हम बड़े हुए
खुशी इस बात की है
कि परिवार के सदस्यों की
यादों में , साँसों में
जीती है वह आज भी
</poem>