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गाँव की सड़क/ संतोष अलेक्स

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सड़क जहाँ मुडती है
वहाँ दोनों तरफ खेत हैं
कहीं पर सड़क के संग
क्‍यारियाँ दिखती है
कहीं गडरिया
भेड़ो को हांकते हुए ले जा रहा है
कहीं कुल्‍फीवाले को
बच्‍चों ने घेर लिया है
तो कभी नौ बजे की बस
पॉम पॉम करती हुई
साढे दस बजे पहुँचती है
हाट के पास उसके मुडने पर
धूल से लथ पथ यात्री व रिक्‍शेवाला
किसी पेंटिंग से
कम सुंदर नहीं लगते

बस रूकती है
कोई शहर से लौटा है
कोई शहर जा रहा है
कोई यह सब देखते हुए
बीड़ी पी रहा है

हाट के बंद होने की सूचना देकर
बस चली जाती है
सड़क वीरान हो जाती है
बावजूद इसके
वह सुबह फिर एक नए दिन के लिए
तैयार होती है
हमारे संग

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