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06:18, 31 मार्च 2022 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=संतोष अलेक्स
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|संग्रह=
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<poem>
यहाँ से गुजरना
मात्र रास्ता तय करना नहीं होता
यहाँ के लोगों की ज़िंदगी को
समझना भी होता है
गाँव की गली में
कहीं जुबैर की माँ
पोते का दांत मंजवाती हुई दिखती
कहीं सोहन दूध लेकर लौटा है
गोबर से पोते गए
दीवार की तरफ से गुजरते
अपरिचित के इर्द - गिर्द
घूमता है जबरू कुत्ता
रसोई के पास लेटी है
कबरी बिल्ली
खेत से तुरंत लाई गई
तोरी और लौकी
हमसे बतियाते
तुरंत बना लो सब्जी
आंगन से उठते चुल्हे के
धुएँ की सोंधी खुश्बू
गाय की रेकन
तुलसी चौरा
निर्मलता है गाँव की
इन घटनाओं में
गाँव की नीरवता इतनी कि
दूर हैंड पंप चलाने की आवाज
सुनाई देती है
गांव की गलियाँ
मात्र गलियाँ नहीं हैं
अनकहे बहुत कुछ कह जाती है
<poem>