भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संतोष अलेक्स |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=संतोष अलेक्स
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeet}}
<poem>
शुरूआती दिनों में
सब कहीं प्‍यार नज़र आता था
लगता था सारी प्रकृति
झूम उठी है सिर्फ हमारे लिए

समझ रहे थे कम
चाह रहे थे एक दूसरे को ज्‍यादा

रात को भोजन करने पर
एकाध कौर
थाली में छोड़ देता मैं
वह चाव से खाती

ज़िंदगी के वो खूबसूरत पल
लगता था कि
हवा, मेघ, आसमान
सब हमारे लिए बना था
<poem>
807
edits