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बाग़ में बग़ावत / विनोद शाही

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डायर का हुक़्म है
बाग़ सैर के लिए हैं, मैदान खेलने के लिए
जलसे जूलूस के लिये लिए आ सकते हैं लोग सड़क पर
शर्त यह है कि ट्रैफ़िक ना रुके
शर्त यह है कि वहाँ सिर्फ़ औरतें ना दिखें
और शर्त यह भी है कि गुण्डे, नक़ाबपोश या पुलिसवाले
उनकी आड़ में हिंसा करें
तो इल्जाम वे ख़ुद अपने सिर ले लें
उसकी जगह लाया गया दूसरा इतिहास नायक
वह जेल से छूटकर अभी अभी आया था
कराई गई उससे तरीर तक़रीर
मेरी तरह सरकार की करो मिन्नत
काले पानी से निजात पाओ
बेअसर करने के लिए उसे
अलहदा किया गया उसे भाषा से उसकी
अकेली रह गई भाषा तो उसे मारे गए डंडे डण्डे तोड़ दी गई हड्डी -पसली
फोड़ दी गई खोपड़ी, जिसके भीतर पनपते थे विचार
पीछे छोड़कर फिर वे चले गए अपने
टूटी -फूटी भाषा के टुकड़े मिल गया सुबूत हाकिम हाक़िम को कि वे वाकई थे पढ़ -लिख गए टुकड़े टुकड़े गैंग के सरकार द्रोही सिरफिरे
सपनों के व्यूह की
इस तरह टूट गई, दूसरी भी किलाबंदी किलाबन्दी
तीसरी जो पांत पाँत थी उसमें था लेकिन प्रेम का , बस , बोलबाला नफरत नफ़रत ने टुकड़े हिंदवी हिन्दवी के उर्दू जुबान के जो किए थे प्रेम ने वे सब उठाए और उन पर उनपर लिख दिए टुकड़खोरो डंडानशीनों टुकड़ख़ोरों, डण्डानशीनों ट्रिगर हैप्पी हिंसकों
डायरों से देश की
मुकम्मल आजादी आज़ादी के ही नारे
पीछे खड़ी कविताओं ने भी
टीस को उन में उनमें मिलायापीर को लयबद्ध कर केकरके, रामधुन में बदल डालासूफियों संतों सूफ़ियों सन्तों की वाणी, जुगलबंदी जुगलबन्दी कर उठीसपनों की पीछे हो रही थी अनवरत जो कदमताल क़दमताल लग रही थी हो ज्यों कोई, फौजी फौज़ी कवायद मार्च पास्ट
डायर को पहली बार चि चिन्ता सी हुई फौजियों को कबसे सपने देखने की लत लगी अच्छे दिनों में बुरी घटना क्यों घटी
'अंग्रेज़' शासक ने पुनः सोचा यही
क्यों न विभाजित करके भारत को चलूं चलूँ फिर से कहीं ?
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