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|रचनाकार=विनोद शाही
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
एक कोढ़ी सेवाग्राम में आता है
ठीक होकर घर चला जाता है
बीमारी लेकिन
किसी और शक़्ल में
फैलती रहती है
पहले से भी ज़्यादा बीमार आदमी
इलाज करने वाले पर शक करता है
शक इस कदर बढ़ता है कि
ख़तरनाक तरीके से
बीमार आदमी
इलाज करने वाले को मार गिराता है
ख़तरनाक तरीके से
बीमार आदमी
सब स्वस्थ लोगों को
अपना दुश्मन मानता है
ख़तरनाक तरीके से
बीमार आदमी के आतंक से
बचने के लिए लोग
नए सेवाग्राम बनाते हैं
और वहाँ
एक स्वस्थ आदमी का बुत लगाते हैं
ख़तरनाक तरीके से
बीमार आदमी
उस बुत पर भी गोलियाँ दागने लगता है
सन्न हुए लोग
अवाक् होकर
उसे देखते रहते हैं
बुत हो गए से लगते हैं
बुत की तरह वे भी
स्वस्थ हो गए से लगते हैं
ख़तरनाक तरीके से
बीमार आदमी को लगता है
दुश्मनों की तादाद बढ़ती जाती है
सेवाग्राम से छुटकारा पाने के लिए अब
ख़तरनाक तरीके से
बीमार आदमी
देश के इन तमाम दुश्मनों को
देशनिकाला देने की योजना बनाता है
बस, उसे इतनी ही चिन्ता है
देशवासियों के संग
कैसे वह अपने प्यारे देश को
देश के बाहर जाने से
रोके रख सकता है ?
</poem>
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|संग्रह=
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एक कोढ़ी सेवाग्राम में आता है
ठीक होकर घर चला जाता है
बीमारी लेकिन
किसी और शक़्ल में
फैलती रहती है
पहले से भी ज़्यादा बीमार आदमी
इलाज करने वाले पर शक करता है
शक इस कदर बढ़ता है कि
ख़तरनाक तरीके से
बीमार आदमी
इलाज करने वाले को मार गिराता है
ख़तरनाक तरीके से
बीमार आदमी
सब स्वस्थ लोगों को
अपना दुश्मन मानता है
ख़तरनाक तरीके से
बीमार आदमी के आतंक से
बचने के लिए लोग
नए सेवाग्राम बनाते हैं
और वहाँ
एक स्वस्थ आदमी का बुत लगाते हैं
ख़तरनाक तरीके से
बीमार आदमी
उस बुत पर भी गोलियाँ दागने लगता है
सन्न हुए लोग
अवाक् होकर
उसे देखते रहते हैं
बुत हो गए से लगते हैं
बुत की तरह वे भी
स्वस्थ हो गए से लगते हैं
ख़तरनाक तरीके से
बीमार आदमी को लगता है
दुश्मनों की तादाद बढ़ती जाती है
सेवाग्राम से छुटकारा पाने के लिए अब
ख़तरनाक तरीके से
बीमार आदमी
देश के इन तमाम दुश्मनों को
देशनिकाला देने की योजना बनाता है
बस, उसे इतनी ही चिन्ता है
देशवासियों के संग
कैसे वह अपने प्यारे देश को
देश के बाहर जाने से
रोके रख सकता है ?
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