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शायद इर में बँधी ख़ून में तर पट्टी के नीचे
तुम छिपाए हो उत्तरी इलाके में मिला अपना ज़ख़्म ।
और जब बाऊबाओ शहर को आग के हवाले
कर रहे थे ’कबाड़िये’
तब शायद शहरी इलाक़े में आख़िरी गोली तुम्हीं ने चलाई थी ।
या शायद एक खेत-मजूर के तौर पर काम कर रहे थे तुम
कार्दोबा के किसी सामन्त फ़ेरनान्दो वायस्केरास के फ़ार्म पर,
शायद तुम्हारी एक छोटी-सी दुकान थी प्लाज़ा देल सोल में
बेचते थे तुम रंग-ब-रंगे स्पहानी फल !
शायद तुम नहीं जानते थे कोई कारीगरी,
शायद तुम्हारे पास एक ख़ूबसूरत आवाज़ थी ।
शायद तुम दर्शनशास्त्र या विधिशास्त्र के एक विद्यार्थी थे
और तुम्हारी किताबें तुम्हारी यूनिवर्सिटी के कैम्पस में
किसी इतालवी टैंक ने कुचल डाली थीं ।
शायद किसी जन्नत में तुम्हारा यक़ीन नहीं था
और शायद धागे में पिरोया एक नन्हा क्रास
तुम्हारे सीने पर लटका हुआ था !
कौन हो तुम, कहाँ पैदा हुए, क्या है तुम्हारा नाम ?
25 दिसम्बर 1937
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