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{{KKRachna
|रचनाकार=मरीने पित्रोस्यान
|अनुवादक=उदयन वाजपेयी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
कोई आसपास नहीं है
कहाँ हूँ मैं ?
मुझे यहाँ अच्छा लग रहा है
वह क्या आवाज़ है ?
मनुष्य की नहीं लगती
वस्तुओं से आ रही है
एक तरह की भुनभुन
वस्तुएँ भुनभुन कर रही हैं
लेकिन बिल्कुल हलके-से
सिर्फ़ इतनी कि तुम्हे महसूस हो कि वे वहाँ हैं
कि वे अच्छा महसूस कर रही हैं ।
यह स्वर्ग हो सकता है
वस्तुओं का स्वर्ग
मैं मरी नहीं हूँ
वस्तु में बदल गई हूँ ।
मुझे यहाँ
अच्छा लग रहा है ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : उदयन वाजपेयी'''
</poem>
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|अनुवादक=उदयन वाजपेयी
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}}
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कोई आसपास नहीं है
कहाँ हूँ मैं ?
मुझे यहाँ अच्छा लग रहा है
वह क्या आवाज़ है ?
मनुष्य की नहीं लगती
वस्तुओं से आ रही है
एक तरह की भुनभुन
वस्तुएँ भुनभुन कर रही हैं
लेकिन बिल्कुल हलके-से
सिर्फ़ इतनी कि तुम्हे महसूस हो कि वे वहाँ हैं
कि वे अच्छा महसूस कर रही हैं ।
यह स्वर्ग हो सकता है
वस्तुओं का स्वर्ग
मैं मरी नहीं हूँ
वस्तु में बदल गई हूँ ।
मुझे यहाँ
अच्छा लग रहा है ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : उदयन वाजपेयी'''
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