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|रचनाकार=बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक= उज्ज्वल भट्टाचार्य
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<Poem>
धान उपजता है नीचे नदी के किनारे ।
ऊपर क़स्बों में है चावल की ज़रूरत ।
जब हम चावल गोदामों में जमा करते हैं
बढ़ जाती है उसकी क़ीमत ।
चावल की बोरी ढोनेवालों को मिलता है और भी कम चावल ।
हमारे लिए चावल हो जाता है सस्ता ।
चावल आख़िर है क्या ?

क्या मुझे पता है, चावल क्या है ?
किसे पता है, पूछो मत !
मुझे पता नहीं, चावल क्या है,
जानता हूँ सिर्फ़ उसकी क़ीमत ।

जाड़ा आता है, कपड़ों की है ज़रूरत ।
फिर तो ख़रीदना है कपास ।
और कपास मण्डी में नहीं लाना है ।
जाड़ा आएगा, कपड़े होंगे महंगे ।
बुनकर माँगते बहुत अधिक पगा ।
जमा हो गया बहुत अधिक कपास ।
कपास आख़िर है क्या ?

क्या मुझे पता है, कपास क्या है ?
किसे पता है, पूछो मत !
मुझे पता नहीं, कपास क्या है,
जानता हूँ सिर्फ़ उसकी क़ीमत ।

इनसान बहुत अधिक भकोसता है
महंगा हो जाता है इसीलिए ।
भकोसने की ख़ातिर ज़रूरत है इनसानों की ।
रसोइया तो खाना सस्ता बनाता है, लेकिन
भकोसनेवाले उसे महंगा कर देते हैं ।
इन्सान आख़िर है क्या ?

क्या मुझे पता है, इनसान क्या है ?
किसे पता है, पूछो मत !
मुझे पता नहीं, इन्सान क्या है
जानता हूँ सिर्फ़ उसकी क़ीमत ।

'''मूल जर्मन भाषा से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य'''
</poem>
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