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लिख रहा हूँ / शेखर सिंह मंगलम

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<poem>
कल से एक कविता लिख रहा हूँ
अतीत का बुरा बीता लिख रहा हूँ
चाहत दिल को समझा दूँ दिमाग़ से
जानें क्यों रावण को राजा राम और
सूर्पनखा को देवी सीता लिख रहा हूँ
यह दिमाग़ मेरा बे-लगाम था और है
तीते को अक़्सर मीठा लिख रहा हूँ
सब समझेंगे कि मैं उन्हें जानता नहीं
मगर मुर्दों को मैं जीता लिख रहा हूँ।
</poem>
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