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नहीं / शेखर सिंह मंगलम

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<poem>
आधी रात में
सूर्य को ढूँढना
केवल मूर्खता नहीं
एक कला भी है।

कला अंतिम विवश जीव में भी;
कला राजा में भी नहीं।

”नहीं“ एक शब्द नहीं
एक इंसान है।

व्यक्ति अर्थ है किन्तु
व्यक्ति अधिकतर अर्थ नहीं

अर्थ तभी तक
जब तक कि इंसानी जीभ
ग़रीब के जीभ की
पर्याववाची नहीं बन जाती।

पर्यायवाची शब्द वाक्य के अधीन होते हैं।
</poem>
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