भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
इस राह का दिख रहा है, वो आख़िरी नाक़ा
अकेला हूँ मैं यहाँ औ’ ढोंग में है सब कुछ डूबा
रंगभूमि नहीं है कोई ये, ज़िन्दगी है अजूबा
1946
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,617
edits