भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भूल गये जीतना / शशि पाधा

1,274 bytes added, 06:37, 3 जून 2022
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशि पाधा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शशि पाधा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
ज़िन्दगी की दौड़ में
भागते-भागते
भूल गये जीतना
हारते-हारते |

मोड़ थे, पड़ाव थे
हिम्मतें भी साथ थी
दिख रहीं थीं मंजिलें
दो कदम की बात थी

हम वहीं खड़े रहे
अवसरों को टालते
भूल गये ----

पंछियों-सा वक्त फिर
पंख बाँध उड़ गया
बहेलियों की आँख में
धूल झोंक मुड़ गया


जाल ही उलझ गया
डोरियों को नापते
भूल गये --

नसीहतें, हिदायतें
ठीक से सुनी नहीं
सही ग़लत के फेर में
ठीक राह चुनी नहीं

रह गये ठगे ठगे
भरम अनेक पालते
भूल गये ----

</poem>