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|संग्रह=आँख हाथ बनते हुए / ज्ञानेन्द्रपति
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यह तुम्हारा उदर ब्रह्माण्ड हो गया है।
यह न हो वही कनखजूरा
पर हो जायेगा।
</Poem>
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