भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरबिन्दर सिंह गिल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरबिन्दर सिंह गिल
|अनुवादक=
|संग्रह=बर्लिन की दीवार / हरबिन्दर सिंह गिल
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
पत्थर निर्जीव नहीं हैं
ये करवटें भी लेते हैं।
यदि ऐसा न होता
क्योंकर नदियों में बांधे बांध
जो पत्थरों के बने होते हैं,
वीरानों में हरियाली चादर
और खुशहाली की
लहर ले आते।
ये पत्थर ही,
वह प्यासी धरती
जो बोल नहीं सक्ती,
के जीवन में एक
अनोखा करवट ले आती है।
कभी तो बर्लिन दीवार के
ये ढ़हते टुकड़े पत्थरों के
ले आए हैं अपने साथ
एक अनंत श्रोत
सद्भावना और आपसी प्यार का
जिसके लिये
पूर्व और पश्चिम
सदियों से तरस रहे थे।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=हरबिन्दर सिंह गिल
|अनुवादक=
|संग्रह=बर्लिन की दीवार / हरबिन्दर सिंह गिल
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
पत्थर निर्जीव नहीं हैं
ये करवटें भी लेते हैं।
यदि ऐसा न होता
क्योंकर नदियों में बांधे बांध
जो पत्थरों के बने होते हैं,
वीरानों में हरियाली चादर
और खुशहाली की
लहर ले आते।
ये पत्थर ही,
वह प्यासी धरती
जो बोल नहीं सक्ती,
के जीवन में एक
अनोखा करवट ले आती है।
कभी तो बर्लिन दीवार के
ये ढ़हते टुकड़े पत्थरों के
ले आए हैं अपने साथ
एक अनंत श्रोत
सद्भावना और आपसी प्यार का
जिसके लिये
पूर्व और पश्चिम
सदियों से तरस रहे थे।
</poem>