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Kavita Kosh से
अब हम हो गए ‘वे लोग’
हम लोगों को और कोई परेशानी नहीं है
देखो, कैसे अच्छी तरह से बीत रही है हमारी कीड़े-मकोड़ों जैसी ज़िन्दगी।
'''मूल बांग्ला से अनुवाद : जयश्री पुरवार'''
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