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चसमौ / चंद्रप्रकाश देवल

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<poem>
पढ़तां-पढ़तां
कदैई किणी बगत दिन रा
आंख्यां मसळण नै
चसमौ उतारूं
के निजर धकै पळकण लागै
वौ रौ वौ हूबौहूब
धूंधळौ-सोक दरसाव
जिकौ चसमौ लागण सूं पैली हौ

यूं रौ यूं
रात रा चसमौ खोल सिरांणै धरूं
वौ दरसाव आय पगात्यां ऊभ जा
जांणै अबार आज व्हैतौ व्है

चसमौ अेक अजब चीज है
हरमेस मगसी दीठ री हद सूं धकै जलमै
अर अेक माठ ऊभी कर जावै
बीत्योड़ा अर बीतता बिचाळै

औ ई कायदौ जोर रौ
चसमौ अमूंमन चाळीसां में लागै
अर फगत ओळूं देखण रै काम आवै
लगै-टगै दो दुनियां रै सांधै
जठा सूं सुरग-नरक री गळियां फंटै
उणरै चोवटै
अपां बुरस मोलावण जावां
जद के अपां कनै रंग नीं व्है
अर चतर वौपारी
उपासरां में कांगस्या बैचण वाळा
अपां नै चसमौ झिलाय दे
अपांरी दीठ नै अेक सपनौ समकाय दे

सावळ सुभट कीं नीं दीसै
इण चसमा रा काच रै कलदारी री गळाई
दोय पट व्है
अेक कांनी व्है दरसाव
दूजी कांनी दीठ
बिचाळै पुड़त में भर्योड़ौ व्है भीत समियौ

चसमौ घणौ ई कैवण में अेक
पण वौ आपरा व्याकरण में
हरमेस बहुवचन व्है
अगन अर पांणी दोनूं में पसर्यौड़ौ
ताता अर सीळा री तासीर लियोड़ौ
अेकै साथै सूझतौ अर आंधौ दोनूं
तौ ई जांणता-वींणता
मिनख क्यूं मोलावै चसमौ
समझ में नीं आवै
अेक सैंपूर दरसाव जांणै जूंण
उणसूं देखणी में नीं आवै

अळगा तांईं देखण रा उमाया
जांणै ई कोनीं इत्ती-सी बात
के दरसाव लारला छापर री सून्याड़ में व्है
उणरौ फोकस
सदीव सूं।
</poem>
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