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थूं सिंझ्या म्हैं पलकां बिछावूं जित्तै-जित्तै औ मुहावरौ कोस सूं निकळ बूहौ जावै म्हैं सूरज सांयत गुणमुणावूं जित्तै-जित्तै अेक जुद्धकमीज री बांह सूं निकळ हांणलड़-फांण न्हाटतौ पूगूं थारी डेहळीभिड़ घायल कर जावै
घणौ ई मन कटै म्हैं अरदास में माथौ निंवावूं थोड़ौ ऊभ जावूं जित्तै-जित्तै अेक वरदान पण करूं कांईंभींत माथला देवां रौ पाठौ फड़फड़ायथूं आवैम्हैं हेलौ पाड़ण थावस उचारूं जित्तै-जित्तै इण सबद सूं निकळ अेक अरथ बेगौसीक म्हनै अणूंतौ डिगपच कर जावै सेवट कविता नै सिंवरण री मन में जचावूं जित्तै डूब जावूूं।-जित्तै वौ जिकौ उणरौ मूंन व्है भक्क देणी रो चवड़ै व्है जावै।
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