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|संग्रह=उडीक पुरांण / चंद्रप्रकाश देवल
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<poem>
कदै-कदै किणी दूजै री ओळूं
अपांरै सपनै गफलत सूं आय बाजै।

पछै कांई? आप जांणौ ई कोनी तो ई रूं-रूं में रास रचै। आप उण नाच री ताछ में अणहद भाळौ। अणहद व्है कांई भलांई औ कोनी जाणौ। आप आपरौ आपौ उछाळौ। खुद रौ भलौ-भूंडौ कीं नीं भाळौ। पण पराई तो हरमेस पराई रैवै आप आ क्यूं कोनी जाणौ। खुदोखुद नै अेकूकी परख री खराद माथै पतवांणौ।

करौ भलांई आप आपरौ मन मोळौ
अैड़ौ करणौ किणी नै कद छाजै?
</poem>
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