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{{KKRachna
|रचनाकार=कृष्णकुमार ‘आशु’
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-5 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
बालपणै में
मा री
आंख रो तारो होंवतो म्हैं
बाई सूं पै'लीं
पूरी हुंवती म्हारी जरूरत।
आज जद
मा नै हुवै
म्हारी जरूरत
तो म्हारै सूं पै'ली
हाजिर हुवै बाई।
</poem>
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|रचनाकार=कृष्णकुमार ‘आशु’
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-5 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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बालपणै में
मा री
आंख रो तारो होंवतो म्हैं
बाई सूं पै'लीं
पूरी हुंवती म्हारी जरूरत।
आज जद
मा नै हुवै
म्हारी जरूरत
तो म्हारै सूं पै'ली
हाजिर हुवै बाई।
</poem>