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मा : तीन / कृष्णकुमार ‘आशु’

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|संग्रह=थार-सप्तक-5 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
म्हूं जद
हुवण लाग्यो जुवान
मा रोज ही करती कोड
ल्यास्यूं इसी बीनणी
कै सारो गांव देखसी।
बीनणी तो आई
गांव भी देख्यो
मा नै अेकली खटती।
मा तो ल्याई बीनणी
पण बीनणी
मा रै लाल नै ई लेयगी।
</poem>
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