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मा : छै / कृष्णकुमार ‘आशु’

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|संग्रह=थार-सप्तक-5 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
जद भी पड़तौ बीमार
मा नै
नींद नीं आंवती
म्हारै इलाज सारू
मा कर देंवती
आपरी कई जरूरतां रो त्याग।
आज
मा बीमार है,
म्हानै कींया आवै नींद ?
नीं....नीं....नीं
चिंता मा री नीं है।
चिंता रो कारण तो
डॉक्टर री फीस
अर मै गी दवायां है।
अबै दवायां ल्यावां
या करां
टाबरां री जरूरतां पूरी।

</poem>
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