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मा : नौ / कृष्णकुमार ‘आशु’

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|संग्रह=थार-सप्तक-5 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
मंगळ नै
नीं बणाणी दाड़ी
अर
बिस्पत नै
लगाणौ कोनीं साबण
आं पाबंदियो रै सागै
मा
म्हारै खातर मनाया
कितरा-कितरा देवता।
म्हू सोचूं
अबै मा ई कोनी रै’ई
म्हारा तो देवता ई रूसग्या।
</poem>
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