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वहाँ, खेतों और मैदानों पर जहाँ उतरती है शाम,
जहाँ खड़े हैं सर्द देवदार और लहराती है जुही
उस लौहबाड़ के पार उस बाग़ में सोए हुए सरेआम ।
तू पलेर्मो में थी, गहरे अन्धविश्वास फैले हैं जहाँ,