भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हल करते जीवन / शशिकान्त गीते

1,253 bytes added, 02:55, 13 अगस्त 2022
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशिकान्त गीते |अनुवादक= |संग्रह=म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शशिकान्त गीते
|अनुवादक=
|संग्रह=मृगजल के गुंतारे / शशिकान्त गीते
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>
गुमसुम क्यों बैठे हो
मन कोरी लाग लिए,
बाँसों के वन गाते
अन्तर में आग लिए ।

अन्तर में आग, चपल
दृष्टि हो काग - सी
ज़िन्दगी रहे न महज
सागर के झाग - सी
संयम हो बँध नहीं
दामन में दाग लिए ।

मौसम कब रोक सका
कोयल का कूकना
ऋतुओं की सीख नहीं
अपने से चूकना
नदियाँ भी राह तकें
मधुर- मधुर राग लिए ।

उतनी ही सृष्टि नहीं
जितनी हम सोच रहे
स्लेट लिखे शब्दों को
पोते से पोंछ रहे
हल करते जीवन, ऋण,
जोड़, गुणा, भाग लिए ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits