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{{KKRachna
|रचनाकार=शशिप्रकाश
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
इरनी के ताल पर
उड़ रहे हैं जल-पक्षी I
दूर से कभी बादलों के
सफ़ेद-भूरे-साँवले टुकड़ों की तरह,
कभी कपास के फाहों की तरह,
कभी लहराती हुई रंगीन साड़ियों की तरह
नज़र आते हैं I
निचाट बंजर खेतों और
बबूल के जंगलों के बीच से होकर
यहाँ तक पहुँचा हूँ I
झोले पर सर टिकाये
सोऊँगा कुछ देर I
फिर वापस लौटूँगा
किसी और रास्ते से होकर I
कल कोई
नया रास्ता ढूँढ़कर
किसी सुन्दर दृश्य तक जाऊँगा I
नए सपनों के लिए
कोई नींद ढूँढूँगा
और तुम्हें याद करने का
कोई नया तरीक़ा I
</poem>
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|रचनाकार=शशिप्रकाश
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
इरनी के ताल पर
उड़ रहे हैं जल-पक्षी I
दूर से कभी बादलों के
सफ़ेद-भूरे-साँवले टुकड़ों की तरह,
कभी कपास के फाहों की तरह,
कभी लहराती हुई रंगीन साड़ियों की तरह
नज़र आते हैं I
निचाट बंजर खेतों और
बबूल के जंगलों के बीच से होकर
यहाँ तक पहुँचा हूँ I
झोले पर सर टिकाये
सोऊँगा कुछ देर I
फिर वापस लौटूँगा
किसी और रास्ते से होकर I
कल कोई
नया रास्ता ढूँढ़कर
किसी सुन्दर दृश्य तक जाऊँगा I
नए सपनों के लिए
कोई नींद ढूँढूँगा
और तुम्हें याद करने का
कोई नया तरीक़ा I
</poem>