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हम-तुम / शशिप्रकाश

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<poem>
कम से कम
कल्पना तो कर ही सकते हैं
कभी-कभी किशोर-वय प्रेमियों की तरह —

कि कभी हम-तुम होंगे
सुदूर वन-प्रान्तर के
निर्भीक हिरनों की तरह I

कि हम-तुम कभी होंगे
साथ-साथ उगते-छिपते
दो तारों की तरह I

कि हम-तुम होंगे
एक ही दिल के दो हिस्से I

हमारा प्यार
एक ईमानदार आदमी के
पसीने की तरह होगा,
मासूम होगा उसकी पत्नी के
सपनों की तरह,

सदियों के सताए गए लोगों के
विद्रोह सा उद्दाम होगा
उसका आवेग I

और, कितना सुन्दर होगा
वह जीवन
तमाम कठिनाइयों के बीच
एक स्वाभिमान छोड़कर
सबकुछ खोने के बाद !

आओ, कुछ ऐसी कल्पनाएँ करें
क्योंकि जीवन के हर नए यथार्थ के
निर्माण के पीछे कल्पना की
भूमिका होती है और

बीहड़ कठिनाइयों से गुज़रने के बाद ही
एक नया सौन्दर्यानुभव
हासिल होता है I
</poem>
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