भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|रचनाकार=शशिप्रकाश
|अनुवादक=
|संग्रह=कोहेकाफ़ पर संगीत-साधना / शशिप्रकाश
}}
{{KKCatKavita}}
पीले पड़ चुके पत्तों को,
उन्हें गिरना ही है ।
बिसुरो मत,
न ही ढिंढोरा पीटो
यदि दिल तुम्हारा सचमुच
प्यार से लबरेज़ है ।
तब कहो कि विद्रोह न्यायसंगत है
अन्याय के विरुद्ध ।
युद्ध को आमन्त्रण दो
मुर्दा शान्ति और कायर-निठल्ले विमर्शों के विरुद्ध ।
चट्टान के नीचे दबी पीली घास
या जज्ब कर लिए गए आँसू के क़तरे की तरह
रखना है साथ
जलते हुए समय की छाती पर यात्रा करते हुए
और तुम्हें इस सदी को
ज़ालिम नहीं होने देना है ।
रक्त के सागर तक फिर पहुँचना है तुम्हें
और उससे छीन लेना है वापस