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|अनुवादक=अनिल जनविजय
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<poem>
आज सुबह राई की एक खतिया में,
चमक रहे थे जहाँ राई के सुनहरे किल्ले
सात पिल्लों को जन्म दिय एक कुतिया ने
गेरुआ-लौह रंग के थे वे सात पिल्ले।

शाम तक कुतिया उन्हें दुलारती रही,
जुबान से अपनी उन्हें चाटती रही,
बर्फ गिर रही थी, ठण्ड थी बहुत
अपने गरम पेट के नीचे उन्हें साटती रही।

और शाम के समय जब मुर्गियाँ सारी 
घुस गईं अपनी-अपनी बाड़ियों में आड़ी
उस कुतिया का मालिक उदास वहाँ आया,
उसने सातों पिल्लों को एक बोरी में जमाया।

कुतिया भाग रही थी मालिक के पीछे
हिमढूहों को पार कर, जो थे ऊँचे-नीचे 
चारों तरफ़ जमे हुए पानी की फिसलन थी 
काँप रही थी कुतिया उसके मन में भी सिहरन थी

जब थक गई भागते-भागते, वो हाँफने लगी,  
थोड़ा रुककर बग़लों से पसीना चाटने लगी
तभी उसे एक घर के ऊपर चाँद दिया दिखाई 
पिल्लों में से एक की झलक जैसे वहाँ उसने पाई

वो रो रही थी कूँ-कूँ, उसकी नज़रों में उतर आई
नीले आकाश में ऊपर सभी पिल्लों की परछाईं
पहाड़ी के पीछे खेतों में जब गायब हो गया चाँद
वो बेहाल हो चुकी थी, बच्चों को दे रही थी विदाई

सब ख़त्म हो चुका था, उसकी न हुई सुनवाई 
हंसते हुए ज्यों उसपर पत्थर फेंक रहे दंगाई
कुतिया की आँखें ढुलक गईं थीं दुख में गहरे
ठण्डे हिम में ढरके पड़े थे दो सितारे सुनहरे 

1915

'''मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''

'''लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए'''
Сергей Есенин
Песнь о собаке

Утром в ржаном закуте,
Где златятся рогожи в ряд,
Семерых ощенила сука,
Рыжих семерых щенят.

До вечера она их ласкала,
Причесывая языком,
И струился снежок подталый
Под теплым ее животом.

А вечером, когда куры
Обсиживают шесток,
Вышел хозяин хмурый,
Семерых всех поклал в мешок.

По сугробам она бежала,
Поспевая за ним бежать…
И так долго, долго дрожала
Воды незамерзшей гладь.

А когда чуть плелась обратно,
Слизывая пот с боков,
Показался ей месяц над хатой
Одним из ее щенков.

В синюю высь звонко
Глядела она, скуля,
А месяц скользил тонкий
И скрылся за холм в полях.

И глухо, как от подачки,
Когда бросят ей камень в смех,
Покатились глаза собачьи
Золотыми звездами в снег.

1915 г.
</poem>
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