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{{KKRachna
|रचनाकार=देवी प्रसाद मिश्र
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
दोपहर का वक़्त है
यात्री कम हैं
छोटा सा स्टेशन जहाँ
पटरियों के पार उस ओर बाईँ तरफ़, दूर जहाँ प्लेटफ़ॉर्म शुरू या ख़त्म होता है,
एक लड़का एक लड़की का हाथ अपने हाथ में लेने के बाद उसे चूमना चाहता है
मैं अपना चेहरा दूसरी तरफ़ कर लेता हूँ
कि न लगे कि मैं उन्हें देख रहा हूँ ।
मैंने दुनिया में प्रेमियों के लिए जगह बनाई<
आप भी यही करें ।
</poem>
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दोपहर का वक़्त है
यात्री कम हैं
छोटा सा स्टेशन जहाँ
पटरियों के पार उस ओर बाईँ तरफ़, दूर जहाँ प्लेटफ़ॉर्म शुरू या ख़त्म होता है,
एक लड़का एक लड़की का हाथ अपने हाथ में लेने के बाद उसे चूमना चाहता है
मैं अपना चेहरा दूसरी तरफ़ कर लेता हूँ
कि न लगे कि मैं उन्हें देख रहा हूँ ।
मैंने दुनिया में प्रेमियों के लिए जगह बनाई<
आप भी यही करें ।
</poem>