भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
अभी शाम नहीं हुई, प्रिया, अभी समय नहीं बीता है,
अभी हमारी आगे भी और मुलाक़ातें होंगीं,
हर साल मई महीने में खिलेंगे खिलेगा बकाइन, जैसे वो खिलता है,
और फिर से कोयल गाएँगी, पक्षियों की चहचहाटें होंगी ।
सोओगी तुम मेरे कन्धे पर सिर रखकर, 
और मौहब्बत के वो तीन शब्द जो दोहराता हूँ कभी-कभी,
कहूँगा मैं तुमसे वैसे ही अभी भी फुसफुसाकर ।
खिड़की से झाँकेगा चन्द्रमा  चन्द्रमा अभी भी और हंसेगा, 
खुली हवा में सांस लेंगे हम फिर से,
नहीं लौटेगा वसन्त जीवन में, यदि कहीं फँसेगा,
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,690
edits