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|अनुवादक=नीलाभ
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<poem>
मैं गोया हूँ
बुच्चे मैदान का, दुश्मन की नुकीली चोंच से यूँ नुचा हुआ
कि फट पड़ी हैं मेरी आँखें अपने कोटरों से
मैं दुख हूँ

मैं युद्ध की ज़बान हूँ
मैं हूँ नगरों के अंगार
सन इकतालीस की बर्फ़ पर
मैं भूख हूँ

मैं गला हूँ,
फाँसी चढ़ी मुटियार का
जिसकी लाश घनघनाती रही सूने चौक में
घण्टे की तरह
मैं गोया हूँ


ओ प्रतिशोध की बौछार !
मैंने फेंक मारी है पश्चिम की ओर
       अनाहूत अतिथि की राख
और ठोंक दिए हैं सदा स्मरणशील आकाश में
कीलों की तरह — तारे
मैं गोया हूँ ।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : [[नीलाभ]]'''
</poem>
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