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|रचनाकार=राजेन्द्र तिवारी
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<poem>
ज़िन्दगी में यूँ तो दुश्वारी बहुत है
इसलिए ज़िन्दा हूँ, ख़ुद्दारी बहुत है

आदमी में अब ये बीमारी बहुत है
हौसला थोड़ा है हुशियारी बहुत है

उसकी नासमझी का अंदाज़ा लगाओ
कह रहा है ख़ुद समझदारी बहुत है

बस ज़रा सा साथ मिल जाये हवा का
आग भड़काने को चिन्गारी बहुत है

काश! होती ये वफ़ादारी की मूरत
वैसे सूरत आपकी प्यारी बहुत है

दिल हमें ‘राजेन्द्र’ समझाता है अक्सर
कम करो इतनी हयादारी बहुत है
</poem>
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