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बचपन - 33 / हरबिन्दर सिंह गिल

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<poem>
बचपन को मनुष्य बनते-बनते
यह समझ लेना चाहिए
वह सिर्फ एक मनुष्य है, मनुष्य।

जो पग-पग पर गलती करता है
कहीं गलती आदत न बन जाए
ईश्वर से डरने का प्रयास करे।

प्रयास यही कि अपराध
दुष्टता का रूप न ले ले
ईश्वर को मुंह दिखाना है, याद रहे।

जिंदगी के बढ़ते कदम इससे पहले
गुनाहों की मंजिल पर पहुंचे
रुक जाना चाहिये, थम कर बैठ जाना चाहिये।

फिर सोचे, मानव बनकर कहीं
मानव का दुश्मन न बन जाए
विचारों की रफ्तार को
ईश्वर के भय से जकड़ लेना चाहिये।

गलती करना कहीं शौक न बन जाए
जिंदगी की चाहतों को बचपन से ही
मानवता के दायरे में रखकर जीना सीखे।
</poem>