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बचपन - 37 / हरबिन्दर सिंह गिल

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<poem>
बचपन कहीं मुरझा कर
न रह जाए
माली को चाहिये
वो अपनी खुशियाँ
गेंदे की क्यारियों में
न ढूँढ कर
गुलाब के एक पौधे में ही ढूँढे।

जिसके महक की खुशियाँ
न उसके बगिया को
बल्कि पेड़ों पर चहकते
पक्षियों को भी मिलेगी
और गुजरते राही
जाते-जाते ठहर
उसे निहारते ही
रह जाएंगे।

गुलाब का एक पौधा काफी है
किसी भी आँगन को
फुलवारी कहलाने के लिये।
और जरूरत नहीं
आँगन की दीवारें
सजा दो फूलों की क्यारी से।
कुछ तो हों खिले
और कुछ मुरझाए।

ऐसा मुरझाया बचपन
बनकर रह जाता है
एक प्रश्न चिन्ह
माँ-बाप की खुशियों पर।
फिर क्यों समझौता
ऐसी नादानी से।
भावुकता बचपन का
एक बहुत ही
कोमल तत्व है।
</poem>