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|रचनाकार=देवनीत
|अनुवादक=रुस्तम सिंह
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
वह औरत
अकसर ही देखी जा सकती है
चौराहों में, सड़कों पर
कागज़ के टुकड़े उठाती
काँच चप्पलें और वह सब कुछ
जो उसके बिना
सब के लिए बेकार होता
उसके पाँव के तलवे
उसकी चप्पलें बन गई हैं
उसके जिस्म के कपड़े
फट गए हैं
जहाँ से उन्हें नहीं
फटना चाहिए था
देख रहा हूँ
उसकी अँगूठी पहनने वाली उँगली
ख़ाली नहीं है ।
'''मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद : रुस्तम सिंह'''
</poem>
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|रचनाकार=देवनीत
|अनुवादक=रुस्तम सिंह
|संग्रह=
}}
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वह औरत
अकसर ही देखी जा सकती है
चौराहों में, सड़कों पर
कागज़ के टुकड़े उठाती
काँच चप्पलें और वह सब कुछ
जो उसके बिना
सब के लिए बेकार होता
उसके पाँव के तलवे
उसकी चप्पलें बन गई हैं
उसके जिस्म के कपड़े
फट गए हैं
जहाँ से उन्हें नहीं
फटना चाहिए था
देख रहा हूँ
उसकी अँगूठी पहनने वाली उँगली
ख़ाली नहीं है ।
'''मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद : रुस्तम सिंह'''
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